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अधूरी आज़ादी

Kuch to pado
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इसमें को शक नहीं है की देश की आज़ादी के लिए कुर्बान हुए वीरो ने कभी भी इस तरह की आज़ादी की कल्पना नहीं की होगी. गुलामी की ज़ंजीरो को तोड़ कर जब “जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए” से लोकतंत्र की स्थापना की कई थी तो उसका उद्देश्य केवल नाम के लिए किसी विदेशी सत्ता को हटाकर ऐसे लोगो को सत्ता देने नहीं होगा जो नाकाम के साथ साथ धूर्त और चालाक भी हो. उन अमर शहीदों ने एक ऐसे आजाद देश की कल्पना की थी जिसमे हर नागरिक की सालो की गुलामी में रहे आम गरीब लाचार हिन्दुस्तानी को ससम्मान जीने का हक मिले. सोचा गया होगा की अपने ही देश के लोग जब सत्ता पर होंगे तब सब लाभान्वित होंगे, लेकिन शायद ये देसी तो विदेशियों से ज्यादा लुटेरे निकले.
दरअसल देश को आज़ादी के साथ ही विभाजन का दंश झेलना पड़ा, जिसकी नीव पहले धर्म के आधार पर रखी जा चुकी थी. इस विभाजन का दुष्परिणाम भारत ने न केवल तब भुगता, बल्कि अब भी भुगत रहा है. देश को बर्बाद करने के लिए सीमा के उस पार ही नहीं बल्कि इस पार भी उनके हिमायती मौजूद है जो समय समय पर गृह युद्ध जैसी स्थितिया लाते रहते है. सत्ता के लालची राजनेता वोट बैंक की लालच में मूक रहते है.
आज क्या हम वाकई में आजाद हुए है? इस सवाल का जवाब कई लोग हा में दे सकते है. वे कहेंगे की अब हम खुली हवा में सांस ले सकते है, हमे किसी विदेशी की जोर जबरदस्ती का डर नहीं, कितने षेत्रो में हमने तरक्की की है आदि आदि. वास्तव में ये कथन आधे ही सही है, वास्तविक आज़ादी अभी भी हमसे कोसो दूर है. देश के हर नागरिक का स्वस्थ्य हो, वो भूखा न हो, हर बच्चे को ज्ञान की रौशनी मिले, इस आज़ादी की कल्पना में सैकड़ो शहीदों ने अपनी जान कुर्बान की थी. उनकी आज़ादी उन कुछ गिने चुने लोगो के लिए ही नहीं थी जो गरीबो और मजबूरो का हक मार कर साडी सुख सुविधाओ को भोग रहे है.
जो सेवा के शेत्र माने जाते थे वो अब असीमित और सरल कमाई का जरिया बन जुके है. राजनीती, धर्म, चिकित्सा, शिक्षा ये वो शेत्र थे जो गरीब जनता को संबल देते थे लेकिन आज ये अरबो खरबों के महल बनाने के साधन है. राजनीती की स्थिति तो उस गंगा के समान हो गई है जिसमे हर किस्म के अपराध करने वाला डुबकी मार कर अपने को पुण्यात्मा दर्शाने में लगा है. हाथ और पैर पकड़ के वोट मांगने वाले पांच सालो तक उस गली मोहल्ले में भूल के भी पाँव नहीं रखते जहा गरीब रहते है. बड़े नेता ही नहीं राजनीती में तो छोटे नेताओ के भी vare न्याय हो रहे है. कई छोटे dal तो केवल बड़े दलों को समर्थन दे कर अपने अनैतिक कामो को करने का जैसे certificate लिए है. जनता के लिए आई परियोजनाओ के पैसो का सब बंदरबाट करने में लगे है.वोट की राजनीती में अपने देश का सर्वनाश हो रहा है.धन बल और बन्दूको के सहारे चुनाव जीते जाते है. कहा गए वो नेता जो जनता के बीच बिना किसी सिक्यूरिटी के मिलते थे, अब तो इन्हें Y और Z श्रेणी की सुरक्षा चाहिए. आज नेता और नौकरशाह भरष्टाचार के नै नै कीर्तिमान sthapit कर रहे है. निम्न श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों के यहाँ से भी अकूत दौलत मिल रही है. ताज्जुब तो ये होता है की ये वो भारत देश है जहा इतने धर्म है जितने विश्व में कही नहीं होंगे, और sabhi अपने को धार्मिक कहलाते है, क्या यही धर्म सिखलाता है?
जनता ने भी आज़ादी का मतलब अपने अपने हिसाब से लगा रखा है. सरकारी संपत्ति, टैक्स और देनदारियो को न देना कई अपना हक समझते है. भ्रष्टाचार केवल नौकरशाहों और नेताओ का नहीं बल्कि राश्ट्रीय चरित्र बल गया है, अंतर केवल बड़ा और छोटे भ्रष्टाचार में है.
आज हमारी अर्थ व्यवस्था लडखडा रही है (केवल आम जनता के लिए, नेताओ का बैंक बैलेंस तो बढता रहता है), खेलो में हम कुछेक पदक लाकर खुश हो जाते है (हलाकि मेरा यहाँ पदक वीरो को निरुत्साहित करने का उद्देश्य नहीं है)
अब आप स्वयं फैसला ले की क्या यही आज़ादी है? कभी कभी तो पुराने लोग कहते हुए सुनाई पड़ जाते है की “इससे अच्छा तो अंग्रेजो का जमाना था” क्या वाकई में?

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