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क्या आमिर के सत्य की जय होगी?

Kuch to pado
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“The Perfectionist” के उपनाम से मशहूर आमिर खान ने अपने इस नाम को सार्थकता देते हुए छोटे परदे पर अवतरित हुए है. अपनी फिल्मो की कहानी या अपनी भूमिका के बारे मैं जिस तरह से वे अंत तक चुप्पी साध के रखते है, ठीक उसी तरह “सत्यमेव जयते” नामक शो के विषय का अंत तक खुलासा नहीं किया, और जब वो परदे पर आये तो शायद सभी ने कहा होगा “देर आये दुरुस्त आये”
ऐसा नहीं है की पहली बार किसी बॉलीवुड सितारे ने छोटे परदे का रुख किया ho, लेकिन अभी तक हमने उनको किसी गेम शो या कोई टलेंट शो को होस्ट करते ही देखा है. आमिर का शो न सिर्फ इन सब से इतर है बल्कि यह देश के हर नागरिक, विशेषकर जिम्मेदार लोगो को उनकी जिम्मेदारी का एहसास भी करता hai. इस में कोई शक नहीं की आमिर की छवि एक अभिनेता से ज्यादा एक संजीदा इंसान की है. उनका साल भर में बमुश्किल एक फिल्म करना जो कुछ सोचने के मजबूर करती हो, उनका “अवार्डो को बिकाऊ” कहकर उन उत्सवो का बहिष्कार करना कही न कही उनका सच के प्रति लगाओ को दर्शाता है, साथ ही उनका चमक-ढमक से विकर्षण भी बताता है. शायद इसी सच क प्रति लगाओ की चाहत के चलते वो इस प्रकार का शो ले कर आये है.
अभी मात्र पहला ही एपिसोड, या कहे पहली ही समस्या को दिखने पर इस कार्यक्रम को आमजन या बड़ी हस्तियों से बढ़िया मिल रही है उसने शायद आमिर के इस प्रोजेक्ट की सफलता की नीव रख दी है. हलाकि किसी भी बॉलीवुड स्टार का आना अपने आप में ही किसी भी कार्यक्रम की लगभग सफलता बन जाता है, लेकिन आमिर की स्टार वैल्यू के अलावा इस कार्यक्रम का ज्वलंत मुद्दों के लिए आवाज़ उठाना उनकी स्टार वैल्यू से बड़ा करक लगता है.
अपने पहले ही एपिसोड में जिस तरह से उन्होंने काया भ्रूण हत्या की समस्या को पूरे आंकड़ो के साथ जनता के सामने रखा है, उससे पता चलता है की उन्होंने and उनकी टीम ने इस शो के लिए कितनी म्हणत की होगी. शो के शुरुआत में ही आमिर ने हमारे इस भ्रम को तोडा की “कन्या भ्रूण हत्या” गाँव की दें है. वाकई में शो में दिखाए गए आंकड़ो और कुछ निजी अनुभवों ने शहरों की चमक ढमक में रहने वाले उच्च, सभ्य और पड़े लिखे समाज पर ही नहीं बल्कि उन शहरों के मुह पर भी कालिक पोत दी. अगर ऐसे कुकृथ्य करने के लिए ही हमने ज्ञान प्राप्त किया है तो इससे अच्छा होता की हम भी निरक्षर ग्रामीण होते. उम्मीद है की उन सामाजिक कार्यकर्ताओं की इतने सालो से चली आ रही मुहीम को ये शो रंग प्रदान करेगा,
इस बीच कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओ का ये कहकर खीजना की “आजकल सामाजिक कर्यकरतो से ज्यादा लोग फिल्म्स्तारो की सुनते है” कुछ हद तक जायज mana जा सकता है, क्योंकि इसमें कोई शक नहीं की ये मुद्दे बहुत पहले से समय समय पर इन समाजसेवियों द्वारा उठाये जा रहे है, लेकिन जिस तरह से आजकल का यह सच है की लोग फिल्म्स्तारो को ज्यादा तवज्जो देते है, वही दूसरी और उन्हें इस शो में आमिर का साथ देना चाहिए क्योंकि पहले बार वो भुक्तभोगियो, सामाजिक कार्यकर्ताओं, निर्भीक पत्रकारों और आम जनता को एक मंच में पर लाये है जो एकजुट होकर, मिलजुल कर काफी कुछ कर सकते है.
ऐसा कुछ सुनने में है की इस टॉक शो के मात्र १6 ही एपिसोड्स आयेंगे (शायद बाद में और बढ़ जाये) जो शायद सारे मुद्दों को कवर कर सके क्योंकि देश के सारे मुद्दों को दिखने के लिए शायद १०० एपिसोड भी कम पड़ जाये, लेकिन आशा है की १६ ही सही वे मुद्दे अपने अंजाम तक पहुचेंगे, और कानून अपनी सही भूमिका निभा कर आगे ऐसे कुकृथ्य ने वालो के लिए कोई नजीर देगा.
हालाकि आमिर को शायद ही कभी पुब्लिसिटी की रही हो इसलिए इसे आमिर का पुब्लिसिटी स्तुंत मन्ना गलत होगा, लेकिन उन्हें भी यह सुनिश्चित करना होगा की यह शो मात्र समस्याओ के आंकड़े, और केवल विचार विमर्श तक ही सीमित न रहे.

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