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कितने बाबा, कितने निर्मल

Kuch to pado
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जिस तरह किसी को सुबह सुबह बिस्तर से उठने पर अपने किसी परिवारजन का चेहरा दिखाई देता है, ठीक उसी तरह से सुबह सुबह टीवी चालू करने पर विभिन्न बाबाओ के दर्शन भी हो जाते है, इन्ही बाबाओ में से एक “निर्मल बाबा” आजकल काफी टीवी चैनल में अपनी “किरपा” बरसते दिखाई पड़ते है. अजीबोगरीब से उपाय बताने वाले और तमाम पूजा स्थलों के भ्रमण का आदेश देने वाले इन बाबा की किसी पर “किरपा” बरसी या नहीं ये तो खैर वे ही बता सकते है जो उनके भक्त है, लेकिन खबरों को सुनकर इतना तो कहा जा सकता है की इन पर ज़रूर काफी “किरपा” बरसी है.
हर दो चार महीनो में ऐसी खबरे देखने/पढने में आ ही जाती है जब किसी बाबा, तांत्रिक, ओझा के फेर में पड़कर या तो हत्यारे बन जाते है या फिर अपनी मूल्यवान वस्तुए गवा देते है. “इश्वर की किरपा” का दावा करने वाले पैसो के इतने लोभी हो सकते है, सुन के ही अजीब लगता है, क्योंकी जिसके पास इश्वर की कृपा हो उसे रुपये-पैसे, धन दौलत की क्या ज़रुरत? वो भी असीमित मात्रा में? जहा उसके कृपा प्रार्थी को कृपा पाने के लिए “प्रवेश शुल्क” देना पड़े.
सवाल केवल ऐसे बाबाओ पर ही नहीं, बल्कि उन पढ़े लिखे और शिक्षित कहे जाने वाले समाज पर भी है जो ऐसे लोगो का खंडन न करके न केवल उनका साथ दे रहा है बल्कि अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से भी दूर भाग रहा है. ये एक संगठित जुर्म है जिसमे नेता, मीडिया और कुछ रसूकदार हस्तिया ऐसे ढोंग को बढ़ावा देते है, और अपने काले धन और धंधे को पवित्रता प्रदान करते है. आश्चर्य होता है की ऐसे समय में कहाँ चले जाते है धर्म का झंडा उठाने वाले? अंत में उन दो बच्चो के उठाये गए कदम की बधाई जिसने इस गोरख धंधे के तह तक जाने की शुरुआत करवाई.

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