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जब जब भी टीम अन्ना ने अपने अनशनो का आयोजन किया है हर बार या तो सामूहिक रूप से, व्यक्तिगत रूप से या फिर उनके मंच पर किसी और ने हमारे “आदरनिये” (जैसे की वे अपने आप को समझते है”) नेताओ को खूब खरी खोटी सुने है. हलाकि ये खरी खोटी बातें केवल अन्ना जी के मंच तक ही सीमित नहीं है. हर गली मोहल्ले के नुक्कड़ो पर इन नेताओ पर कटाक्ष किये जाते है. जैसा की एक सामाजिक रीती है की किसी के कर्म ही उसके बारे मैं लोगो की राय निर्धारित करते है.
हलाकि किसी एक आदमी की वजह से उसके पूरे खानदान को गली देना या यह मत बना लेना की “वो ऐसा है तो उसके खानदान के लोग भी ऐसे ही होंगे” गलत है, और कम से कम हम मैं से ज्यादातर का यही नजरिया रहता है, लेकिन ये भी सही है की एक आदमी अपने पुरे कुल के कुछ न कुछ लक्षण तो दिखा ही देता है, संसद में भी कमोबेश यही स्थिति है. टीम अन्ना के लोग यादो सांसदों को अपराधी कह रहे है तो कोई हवा मैं तीर नहीं चला रहे है उनके पास इसके साक्ष्य है. ऐसे में कुछ निर्दोष सांसद (जो शायद ही १ प्रतिशत के करीब हो) को ऐसी बातो को सुनकर गुस्सा आ सकता है, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया में अपराधिक प्रष्टभूमि के लोगो को इन बयूनो से ज्यादा ही नाराजगी है. वक्त का तकाजा यही है की यदि वे संसाद जो अपने आप को बेदाग़ मानते है एकजुट हो और ऐसी गंदगियो को अपने बीच में से निकलने का प्रयास करे, और अगर ऐसा करने में वे असमर्थ है तो इस तरह की “गन्दी” राजनीती से बहार आकर विशुद्ध रूप से जनसेवा करे.
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