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उत्तर प्रदेश की जनता ने जिस प्रकार से “साईकिल” को इस बार जनादेश देकर न केवल मीडिया और विश्लेषको को चकित किया, वही अपने प्रदेश में त्रिशंकु सरकार बनने से भी बचा लिया. हलाकि यह उन लुभावने वादों का नतीजा है, जो युवा वोटरों को लुभाने के लिए किये गए या फिर प्रदेश राजनीती की विकल्पहीनता की स्थिति, या फिर “भैय्या जी” का जादू ये तो विश्लेषण की बात है. लेकिन इतना अवश्य है की प्रदेश की सत्ता संभल पाना इतना आसान न होगा. ये पहली बार नहीं है की इस प्रदेश में किसी एक पार्टी को जनादेश मिला हो. जहा BSP को २००७ में बहुमत मिला था तो SP को दूसरी बार जनता ने इस इनाम से नवाजा है. इस तरह से देखा जाये तो ये SP एक टेस्ट मैच की दूसरी इन्निंग्स खेल रही है जिसकी पहली पारी में उसे follow on मिला था. follow on इसलिए क्योंकि उनका पहला शाषण काल दागो से भरा पड़ा है. अब सबसे पहली चुनौती सुशाषण को सुनिश्चित करना होना चाहिए.
हालाकि पिछले शाषण काल और इस बार के में नेतृत्व का अंतर ज़रूर है लेकिन नेतृत्व के साथ साथ चरित्र सुधरने के दुरूह चुनौती होगी. यदि ऐसा नहीं होता है तो हो सकता है की “साईकिल” उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावो में काफी पीछे रह जाये.
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