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चुनाव में प्रासंगिक और ज्वलंत मुद्दे – कांटेस्ट

Kuch to pado
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उत्तर प्रदेश का चुनावी समर थमने को है और अब जीत हार के गणित लगने लगेंगे. इस चुनाव के दौरान प्रदेश की जनता ने चुनावी प्रचारों के दौरान एक से एक विभिन्न पार्टी के दिगज्ज नेताओ को वादों के पिटारे को खोलते देखा. हलाकि यह भी देखा गया की उत्तर प्रदेश के किसी भी शहर की जनता हो, उसके मुद्दे अभी भी वे ही है जो शायद आज़ादी के बाद थे, बिजली, पानी, सड़क इत्यादि. इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है की आज़ादी के छे दशक बीत जाने के बाद भी देश के लगभग ८०-९० प्रतिशत जनता की समस्याए जस की तस है. इससे भी अधिक दुर्भाग्य की बात ये है की जनता को आगे ले जाने वाले अगुवे इन समस्यायों से उदासीन बने हुए है और आरक्षण, लैपटॉप, tablet अदि का झुनझुने पकड़ा रहे है.
जनता की ये मूलभूत समस्याए है जो नगर पालिका से लेकर लोक सभा के चुनावो में हावी रहती है. काश हमारे नेता के पास इन मूलभूत ज़रूरतों से पार पाने की एक निति होती. कैसे सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का स्तर बदाय जाये जिससे बच्चे और उनके माता पिता स्वतः ही शिक्षा की ओर आकर्षित हो, न की मात्र मिड डे मील और छात्रवृत्ति के लालच में, कैसे बेरोज़गारी की बदती फ़ौज से निपटा जाये और हर हाथ को उसके मुताबिक काम मिल सके जिससे न केवल बेरोज़गारी मिटे बल्कि देश के उत्पादन में भी तरक्की हो. कैसे इस मशीनी युग में भी उन लघु और कुटीर उद्योगों को जिन्दा रखा जाये. कैसे गरीबो को न केवल सुलभ बल्कि सस्ता और लाभकारी इलाज उपलब्ध हो. कैसे न केवल विदेश में जमा काला धन बल्कि देश में भी कुछ “बेईमानो” के द्वारा लूटा गया धन देश की जनता के विकास के लिए लगाया जाये. केवल बिजली देने के ही हवाई वादे नहीं बल्कि बिजली कैसे उद्पादित हो इसके बारे में भी कोई घोषणा की जाती. वाकई में ये ही है जनता और देश के ज्वलंत मुद्दे जिनका हर शहर की जनता समाधान चाहती है. आज जब हम से बाद स्वतंत्र हुए देशो ने हम से कही जयादा तरक्की कर ली है तब क्या देश की जनता इतनी भी आस नहीं लगा सकती.

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