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भारतीय राजनीती में सुधार – कांटेस्ट

Kuch to pado
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आज भारतीय राजनीति जिस दिशा में जा रही है उसको देख कर कहा जा सकता है की निसंदेह भारतीय राजनीती में सुधार की दरकार है. अब राजनीती केवल देश के या नागरिको के सेवा मात्र न हो कर धन बनाने का जरिया हो गया है. आप किसी भी दल में देख ले छोटे से छोटा नेता भी लखपति या करोडपति बना हुआ है. जो कुछ साल पहले तक आर्थिक स्थिति से अर्श पे थे राजनीती में आने के बाद वे फर्श छूने लगे. छोटे दल ही नहीं अब तो पुराने और स्थापित राजनितिक पार्टियां अपराधियों और दागियो को चुनाव में खड़ा करने लगी है. जनता के पास विकल्पहीनता की स्थिती आ गयी है क्योंकि “सभी की दाढ़ियो में तिनके है किस चोर को चुने” ऐसी स्थिती में कहा जा सकता है की अविलम्ब भारतीय राजनीती को बदलने की ज़रुरत है.
अब सबसे बड़ा सवाल ये है की “इस तालाब का पानी साफ़ कैसे किया जाये” तो इसके लिए जनता के साथ साथ कुछ संवेधानिक संस्थाए जैसे चुनाव आयोग और न्यायालयों को आगे आना होगा. सर्वप्रथम तो राजनीती में प्रवेश की कामना कर रहे लोगो के लिए कुछ योग्यताओ का निर्धारण करना अति आवयशक है, जो शेक्षणिक चाहे कम हो लेकिन राजनीती में प्रवेश लेने वाले से कम से कम ये अपेक्षा रखती हो की वो देश और उसके नागरिको की ज्यादा चिंता करे न की केवल अपने और अपनों के. ये तो सब जानते है की कितने प्रतिशत नेता ही सही दंग से शिक्षित होते है और क्योंकि राजनीति में कोई भी नागरिक आ सकता है ऐसे में किसी विशेष विषय पर उससे डिग्री की कामना रखना भी बेमानी होगा इसलिए एक ऐसी “राजनीति की पाठशाला” या कार्यशाला की व्यवस्था की जा सकती है जिसमे किसी भी दल में शामिल हुए आदमी को पहले उसमे दाखिल होना अनिवार्य किया जाये और ये हर दल के लिए ज़रूरी होगा. वैसे भी जब देश में निम्न श्रेणी कर्मचारियों तक के लिए काम के अनुसार योग्यता निर्धारित है तो फिर भविष्य के जनप्रतिनिधियों के लिए क्यों नहीं जिनका दायित्व कही ज्यादा है.
दूसरा कदम न्यायपालिका को ये उठाना होगा की दागी को किसी भी हालत में जब तक चुनाव में न खड़ा होने दिया जाये जब तक उस पर से लगे इल्जामो से वो बरी न हो जाये, ये जब ही हो पायेगा जा मुकदमो के फैसले जल्दी होने लगेंगे. तीसरा कदम होना चाहिए असंक्य की गिनती में बढते हुए डालो पर लगाम लगाने का. अभी होता ये है की वे दल जो केवल स्थानीय कहलाने की अधिकारी है राज्य या देश की सरकार बनाने में महत्व्य्पूर्ण भूमिका निभाने लगे. इन दलों में से कुछ का तो केवल ये ही उद्देश्य रहता है की २५ – ५० सीट पा ली जाये और किसी बड़े दल को समर्थन देने के बहाने मलाईदार पदों को पा कर उस दल को अपनी ऊँगली पर नचाये. बड़े दल भी सत्ता की लालच में आ कर किसी से फी और कितने भी पैबंद अपनी कमीज़ में लगवाने को तैयार रहते है. इसके लिए सबसे ज़रूरी है सरकार बनाने के लिए सीट मिलने की संख्या में कटौती करना क्योंकि देखा जाता है की इतने दलों में वोट बंट जाते है और पूर्ण बहुमत किसी को नहीं मिल पता जिससे मजबूरी में जनता को एक गठबंधन सरकार को झेलना पड़ता है. एक और कदम जिसकी सबसे ज्यादा ज़रुरत है वो है गठबंधन के नियम में परिवर्तन, इसमें दलों पर ये अनिवार्यता लागू करना होगी की चुनाव पूर्व गठबंधन ही मान्य होगा, चुनाव उपरान्त कोई गठबंधन नहीं होगा. विभिन्न दल में कार्यरत नेताओ, कार्यकर्ताओ की आर्थिक स्थिती की भी सालाना समीक्षा ज़रूरी है, अचानक से बड़ी मात्रा में धन बढने का पूर्ण स्पष्टीकरण जनता के सामने लाना आवयशक होना चाहिए. उपरोक्त सुझाव को अपनाकर कुछ हद तक राजनीती में सफाई लायी जा सकती है. किसी भी व्यक्ति, संस्तर आदि में सुधार करना असंभव नहीं ज़रुरत है इच्छाशक्ति की.

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